प्रस्तुत लेख सामाजिक स्तरीकरण से संबंधित है।
लेख को लिखने में विभिन्न पुस्तकों को माध्यम बनाया गया है।
लेख का उद्देश्य छात्र-छात्राओं को सामाजिक स्तरीकरण के बारे में जानकारी उपलब्ध करना है ताकि वह अपने ज्ञान व समझ को बढ़ा सकें।
विश्व की सभी संस्कृतियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि किसी भी समाज में व्यक्तियों को समान स्थिति व पद प्राप्त नहीं होते हैं।
सभी समाज अनेक सामाजिक समूहों में विभिक्त होते हैं।
यह आदिम सामाजिक व्यवस्था से ही है।
इसी व्यवस्था के आधार पर समाज में ऊँचे एवं नीचे पदों का विभेद भी दिखाई देता है।
जैसे-जैसे समाज का आकार बढ़ता गया तो उसी तरह समाज में सभ्यता एवं संस्कृति में जटिलता भी बढ़ती गई।
इसी तरह समाज में उच्चता एवं निम्नता की भावना ने भी जन्म ले लिया।
अतः यह कहा जा सकता है कि विश्व में ऐसा कोई भी समाज नहीं है जहाँ सभी लोग लगभग समान हैं और न ही किसी समाज में सभी सदस्यों को आगे बढ़ने का समान अवसर मिल पाता है।
इस व्याप्त असमानता के कारण समाज में अक्सर तनाव और विरोध देखने को मिलता है।
सामाजिक स्तरीकरण का अभिप्राय आर्थिक स्थिति, राजनीतिक शक्ति अथवा सामाजिक स्थिति के आधार पर समाज का असमान समूहों में विभाजन है।
स्तरीकरण को व्यक्तियों के विभिन्न समूहों के बीच संरचित असमानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
एक विशेष सामाजिक स्तर दूसरे सामाजिक स्तरों की तुलना में श्रेष्ठ या नीच, विशेष अधिकार प्राप्त या उनसे वंचित, प्रभुत्वशाली या प्रभुत्व के अधीन हो सकता है।
इस तरह, सामाजिक स्तरीकरण में विभिन्न सामाजिक स्तरों के बीच संरचित असमानता का व्यवस्थित नियमन शामिल होता है।
सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत किसी देश की आबादी को विभिन्न आर्थिक और जैविक वर्गों में बाँटकर दिखाने की प्रक्रिया।
आमदनी, व्यवसाय या शिक्षा की दृष्टि से अथवा धर्म, जाति, नस्ल आदि की दृष्टि से वर्ग या समूह बनाकर जनसंख्या का सामाजिक, आर्थिक अध्ययन इसका उद्देश्य होता है।
समाज को इस प्रकार के वर्गों, समूहों या स्तरों में बाँटकर इनके विशिष्ट गुणों और इनकी समस्याओं का अध्ययन भी इसके अन्तर्गत समाविष्ट होता है (सिंह, 2009: 591)।
स्तरीकरण के अध्ययन के माध्यम से समाजशास्त्री मुख्य रूप से तीन बातों का अध्ययन करते हैं-
– व्यक्ति को समाज में जीवित रहने के लिए या आगे बढ़ने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता होती है, वे सभी लोगों को समान रूप से उपलब्ध हैं या नहीं?
क्या हर एक व्यक्ति को शिक्षा या नौकरी पाने का समान अवसर मिल पाता है?
भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में क्या भेदभाव बरता जाता है?
-समाज में सभी व्यक्ति एक ही स्थान पर खड़े नहीं होते हैं।
समाज एक श्रेणीबद्ध व्यवस्था है।
कुछ लोगों को जन्म से ऊँचा स्थान प्राप्त होता है, तो कुछ लोगों को बहुत कोशिश के बावजूद ऊँचा स्थान कभी प्राप्त नहीं होता है।
राजे-महाराजे के घर में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदा ऊँची हैसियत का व्यक्ति माना जाता है।
कुछ ऐसे भी समाज हैं, जहाँ मनुष्य अपनी कोशिशों से समाज में बड़ा-से-बड़ा स्थान प्राप्त कर लेता है।
-प्रत्येक समाज में कुछ ऐसे समूह होते हैं, जो दूसरों पर अपना प्रभुत्व रखते हैं और नीचे वाले लोगों को ऊपर जाने से प्रायः वंचित रखने की कोशिश करते हैं।
इन्हीं तथ्यों को समझने के लिए समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सामाजिक स्तरीकरण का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
भारत के सन्दर्भ में स्तरण जैसे विषय का कुछ विशेष ही महत्व है।
सामाजिक स्तरीकरण के बारे में गिडेन्स के विचार-
“स्तरीकरण को व्यक्तियों के विभिन्न समूहों के बीच संरचित असमानता के रूप में परिभाषित किया जा कसता है।”
(Stratification can be defined as structured inequalities between different groupings of people.)
दुनिया में सामाजिक स्तरीकरण पाँच आधारों पर होता है, जैसे- दास प्रथा, वर्ण, जाति, इस्टेट, एवं वर्ग।
स्तरीकरण में चार प्रकार की सामाजिक प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं–
जैसे, (1) विभेदीकरण (2) क्रमविन्यास (3) मूल्यांकन (4) पुरस्कार एवं दण्ड।
स्तरीकरण तथा विभेदीकरण-
दो व्यक्तियों या परिवार के बीच अन्तर या असमानता को विभेदीकरण कहा जायेगा, स्तरीकरण नहीं।
स्तरीकरण का स्वरूप सामाजिक होता है, जो बहुत बड़े पैमाने पर समाज में देखा जाता है।
स्तरीकरण समाज का एक समस्तरीय (Horizontal) विभाजन है, तो विभेदीकरण विषमस्तरीय या खड़ा (Vertical) बँटवारा है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि स्तरीकरण विभिन्न स्तरों का नीचे से ऊपर एक प्रकार की श्रेणीबद्ध व्यवस्था है।
विभेदीकरण एक खड़ा विभाजन है, जहाँ विभिन्न खण्डों की श्रेणीबद्धता की बात नहीं होती है।
मेटा स्पेंसर के अनुसार स्तरीकरण की विशेषताएँ–
1-स्तरीकरण का स्वरूप सामाजिक होता है (Stratification is social)
3-स्तरीकरण सर्वव्यापी है (Stratification is ubiquitous)
4-स्तरीकरण का स्वरूप असमान होता है (Stratification is diverse)
5-स्तरीकरण परिणामी होता है (Stratification is consequential)
सन्दर्भ-
मानवशास्त्रियों एवं इतिहासकारों के अनुसार अब तक का समाज मुख्य रूप से पाँच आधारों पर विभक्त रहा है, जैसे- (1) दास प्रथा (2) वर्ण-व्यवस्था (3) जाति (4) इस्टेट एवं (5) वर्ग।
दासप्रथा एक आखिरी किस्म की सामाजिक असमानता का द्योतक है। प्राचीन एवं मध्यकालीन युग में इस प्रथा का प्रचलन कई मुल्कों में था। पर इस प्रथा में भी काफी भिन्नताएँ थीं। कुछ समाज में दासों को कोई भी आर्थिक और कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं था, तो कुछ समाजों में उसे थोड़ा-बहुत मानवीय अधिकार प्राप्त था। इस प्रथा के तहत आर्थिक और कानूनी दोनों प्रकार की असमानताएँ मौजूद थीं। गुलामों की जिन्दगी कहीं जानवरों की तरह थी, तो कहीं कृषि मजदूरों या घरेलू नौकरों की तरह। यूनान में कभी राजा-महाराजा गुलामों का जानवरों की तरह खरीद-बिक्री किया करते थे। अठाहरहवीं एवं उन्नीसवीं सदी में उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका में दासों से खेती-बाड़ी का काम लिया जाता था। आज दासता के आधार पर शायद ही कहीं सामाजिक स्तरण देखने को मिलता है।
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