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The Best Relation समाज एवं एक-समाज

समाज एवं एक-समाज समाजशास्त्र की केन्द्रीय अवधारणा है। ये दोनों अवधारणाएं न केवल समाजशास्त्र की विषय वस्तु को निर्मित करती है बल्कि समाजशास्त्र की परिभाषा का भी केन्द्र बनकर उभरती है। यह लेख विभिन्न पुस्तकों एवं पत्रिकाओं के सहयोग से लिखा गया है। समाज एवं एक-समाज की अवधारणा को लेखकों ने अपने-अपने माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। यह लेख विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों के लिए सहयोगात्मक होगा। ऐसा मेरा मानना है। लेख लिखने का तात्पर्य केवल समाज और एक-समाज के बारे में अपने ज्ञान को बढ़ाना है।

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समाज एवं एक-समाज समाजशास्त्र की केन्द्रीय अवधारणा है।

समाज एवं एक-समाज की अवधारणाएं न केवल समाजशास्त्र की विषय वस्तु को निर्मित करती है बल्कि समाजशास्त्र की परिभाषा का भी केन्द्र बनकर उभरती है।

एक मूर्त संरचनात्मक इकाई के रूप में एक-समाज का आशय विशेषतः केंद्रित व्यक्तियों के उस वृहद् समुच्चय से है जो भावनात्मक स्वामित्व के स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

परंतु इन इकाइयों के मध्य अंतःक्रिय का स्तर सामान्यतः निम्न होता है।

व्यक्तियों का यह वृहद् संकलन उस सामान्य विशेषता को अपनी अस्मिता का आधार बनाता है और स्वयं को अर्थात् स्वयं के एक-समाज को अन्य एक-समाजों से पृथक कर लेता है।

इस दृष्टि से एक समाज किसी भी सामाजिक व्यवस्था की सामाजिक संरचना के बहुलतामूलक चरित्र को व्यक्त करते हैं। सामान्य दृष्टि से हम एक-समाज को समाज की लोकप्रिय अवधारणा की संज्ञा भी देते हैं।

मानव सभ्यता का प्रारंभ एवं उसका विकास वस्तुतः समाज की उत्पत्ति एवं उसके विकास का इतिहास है।

प्रकृति एवं मानव के द्वंद्वात्मक सम्बन्धों से उत्पन्न सामाजिक परिवेश समाज एवं संस्कृति की स्थापना का परिचायक है।

समाज में अंतर्निहित सामाजिकता मनुष्य को सामाजिक प्राणी का रूप प्रदान करती है।

मनुष्य विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समूह में अंतःक्रिया के लिए बाध्य है जिसकी परिणति सामाजिक सम्बन्धों की निरंतरता एवं उनमें परिस्थितिजन्य परिवर्तनों के रूप में होती है।

सैद्धांतिक अर्थ में सामूहिकता से निर्मित आदर्शमूलक एवं वास्तविक सामाजिक परिवेश को समाज की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि इस प्रकार का परिवेश मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों द्वारा निर्मित नहीं किया जा सकता।

अतः मानव समाज एवं पशु समाज के मध्य अंतर स्पष्ट हो जाता है।

संस्कृति एवं परिवर्तनशील व्यवस्थाएं मानव समाज को पशु समाज से पृथक करती हैं।

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समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है जबकि एक-समाज व्यक्तियों के समुच्चय से निर्मित होता है,

इसलिए इसे एक-समाज की संज्ञा भी दी जाती है।

जैसे-ब्राह्मण समाज, हिन्दू समाज, भारतीय समाज, इत्यादि इसके उदाहरण हैं।

समाज सम्बन्धों से निर्मित होने के कारण अमूर्त होता है जबकि एक-समाज व्यक्तियों से निर्मित होने के कारण मूर्त व्यवस्था है।

समाज को किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि सामाजिक संबंधों का दायरा व्यापक/असीमित होता है, जबकि एक-समाज एक क्षेत्र विशेष तक सीमित होता है।

समाज एवं एक-समाज का प्रक्रियात्मक/व्यवस्थामूलक पक्ष है जबकि एक-समाज समाज का संरचनात्मक पक्ष है।

समाज में समानता और भिन्नता दोनों पाई जाती हैं जबकि एक-समाज में समानता का भाव अधिक महत्वपूर्ण होता है।

समाज में सहयोग एवं संघर्ष दोनों की उपस्थिति होती है जबकि एक-समाज में सहयोग मूल तत्व होता है और संघर्ष उत्पन्न होने पर समूह का विघटन हो जाता है।

समाज का आकार बड़ा होता है जबकि एक-समाज का आकार छोटा होता है। यह समाज एवं एक-समाज का अच्छा उदाहारण है।

समाज में सांस्कृतिक बाहुल्यता का गुण होने के कारण लोगों की जीवन शैली में विविधता देखने को मिलती है।

एक-समाज में अपनी सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक बड़ी संख्या में लोग अंतःक्रिया करते हैं और एक समान संस्कृति को साझा करते हैं।

अर्थात् अंतःसंबंध वृहद् समूहों के नेटवर्क की एक इकाई के रूप में एक-समाज को देखा जाता है और जो समान जीवन शैली को अभिव्यक्त करते हैं।

समाज अमूर्त है यह कभी समाप्त नहीं हो सकता यद्यपि एक-समाज मूर्त है इसका विखण्डन संभव है।

समाज का विकास स्वभाविक होता है और एक-समाज का सचेतन प्रयास के द्वारा होता है।

समाज संबंधों का जाल होता है और एक-समाज व्यक्तियों का समूह होता है।

समाज की अनिवार्य सदस्यता होती है और एक-समाज में ऐच्छिक सदस्यता होती है।

समाज का कोई निश्चित भू-भाग नहीं होता है और एक-समाज का निश्चित भू-भाग होता है।

उपरोक्त अंतरों से यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्रीय दृष्टि से समाज एवं एक-समाज पृथक और विशिष्ट अवधारणाएं हैं।

सन्दर्भ-

  1. धर्मेन्द्र, (2010), ’समाजशास्त्र’, टाटा मैकग्राहिल एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृ० 5।
  2. सिडाना, ज्योति (2020), ’समाजशास्त्र: एक मूल्यांकनात्मक परिचय’, रावत पब्लिकेशन, जयपुर, पृ० 117।

Also Read: https://www.educatedchaudhary.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c/The Best understanding way समाज

Dr. Dinesh Chaudhary

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