सोरोकिन
कौंत ने समाजशास्त्र की परिभाषा निर्धारित करने के बजाय उसे समाजशास्त्र की संज्ञा दी है तथा उसका स्वरूप प्रदान करने के लिए अधिक परिश्रम किया।
कौंत विचार था कि अपरिपक्व सामाजिक तथा विज्ञान संबंधी विचार कालान्तर में परिपक्व एवं पुष्ट बन जाते हैं।
कौंत अनुसार सामाजिक विज्ञानों की स्थिति वैसी ही थी जैसी खगोल विज्ञान के विकास के पूर्व ज्योतिषी की किसी समय थी।
किसी विषय का भविष्य में क्या स्वरूप अथवा क्षेत्र होगा इसके बारे में पूर्व घोषणा करना अनुपयुक्त होगा।
इस प्रकार कौंत से समाजशास्त्र के क्षेत्र संबंधी पूर्ण सामग्री प्राप्त नहीं होती।
कौंत ने समाजशास्त्र को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया।
1. सामाजिक स्थिरता
सामाजिक स्थिरता में मुख्यतः संस्थाओं या संस्था संकुलों का अध्ययन किया जाता है, जैसे- परिवार, विवाह, धर्म, जाति, अर्थव्यवस्था, शासन व्यवस्था इत्यादि।
कौंत के अनुसार समाजशास्त्र का कार्य इन संस्थाओं के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करना है।
2. सामाजिक गत्यात्मकता
सामाजिक गत्यात्मकता में उन सभी अंगों की गतिशीलता तथा कालान्तर में हुए परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है जिन अंगों को सामाजिक स्थिरता में संस्थाओं के रूप में देखा गया है।
अर्थात् किस संस्था में किस प्रकार का विकास हुआ तथा कालान्तर में किस क्रम में परिवर्तन आया।
कौंत यह मानते हैं कि समाज का क्रमिक विकास हुआ है और यह विभिन्न स्तरों से गुजरकर प्रगति करता रहा है।
कौंत के अनुसार समाज के विकास के तीन स्तर
कौंत ने समाज के विकास के मुख्यतः तीन स्तर बताये हैं।
1. धर्मशास्त्रीय स्तर,
2. तात्विक स्तर,
3. प्रत्यक्षवादी स्तर
कौंत की तीसरी महत्वपूर्ण विचारधारा यह थी कि समाज की संस्थाएं एक दूसरे से पृथक् नहीं हैं।
श्रंख्ला की तरह संस्था की एक कड़ी दूसरी कड़ी से जुड़ी हुई है।
अतः एक संस्था के अध्ययन में सम्पूर्ण कड़ी का ध्यान रखना चाहिये।
समाज की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति नहीं, परिवार समूह है।
कौंत ने समाज में सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक शक्ति मस्तिष्क को माना है।
समाजशास्त्र का मुख्य क्षैत्र तो मानव पीढ़ियों का एक दूसरे पर नियमित और निरन्तर प्रभाव है।
अगस्त कौंत ने पांच प्रकार के भौतिक विज्ञानों की कल्पना की है-
पहला विज्ञान (अर्थात् खगोलशास्त्र) ऐसा है जो दूसरे विज्ञानों को प्रभावित करता है, लेकिन स्वयं उनसे प्रभावित नहीं होता। अन्तिम विज्ञान अर्थात् सामाजिक भौतिकी ऐसा विज्ञान है जो मनुष्य के लिये सबसे अधिक रूचि का विषय है।
समाजशास्त्र इसी विज्ञान के अन्तर्गत है, यह विज्ञान दूसरे विज्ञानों पर निर्भर करता है लेकिन उन्हें प्रभावित नहीं करता।
कौंत के विचारों में समाजशास्त्र को अन्तिम विज्ञान मानना चाहिये जो मानवीय और सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है और वास्तविक रूप में हमें एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
इस विज्ञान में पिछले सभी विज्ञानों के परिणामों का प्रयोग किया जाता है और शेष सभी विज्ञानों के क्षेत्रों को भी सम्मिलित किया जाता है।
कौंत के विचारों में सामाजिक घटना को विभाजित करना सम्भव नहीं है, अतएव इसका एक ही विज्ञान के अन्तर्गत सम्पूर्ण रूप में अध्ययन किया जाना चाहिए।
कौंत के अनुसार समाजशास्त्र की ऐसी धारणा के प्रति जिसमें सब कुछ समेट लिया गया हो, दूसरे विज्ञान के कार्यकर्ताओं तथा अनेक समाजशास्त्रियों ने भी आपत्ति उठाई है, लेकिन फिर भी कौंत के कथन में बहुत कुछ सत्यता झलकती है।
व्यावहारिक रूप में सामाजिक घटना के लिए विभागों में बांट दिया गया है, लेकिन क्या वास्तव में विभाजन इस प्रकार सम्भव है?
जब तक सामाजिक घटना को पूर्ण रूप में न देखा जाये, तब तक समाजशास्त्री यह नहीं जान सकता है कि पृथक् विभागों में जिन दशाओं को अपनाया गया है, यह अन्तिम व्याख्या की सम्भावना की और झुका हुआ है।
हर्बर्ट स्पेन्सर (1982-1903)
स्पेन्सर के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों का पिता है जिसमें दूसरे विज्ञानों के परिणामों को समन्वित किया जाता है।
समाज के एक सामान्य सिद्धान्त के लिए समाजशास्त्र की सबसे बड़ी प्राप्ति सामाजिक घटना के विशाल विषय समूह को समझना होगा ताकि समाज को सम्पूर्ण रूप में देखा जा सके।
हर्बर्ट स्पेन्सर की यह धारणा संयुक्त राज्यों और दूसरे देशों में स्वीकृत की गई और आज भी यह धारणा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
स्पेन्सर प्रत्यक्षवाद के विचारक थे।
उनका विचार था कि यदि विज्ञान की विधि को समाज के अध्ययन में लगाया जाये तो मनुष्य की सामाजिक पीड़ाएं तथा कठिनाइयां दूर की जा सकती हैं।
मनुष्य का प्रकृति पर नियंत्रण मजबूत बनाया जा सकता है।
स्पेन्सर ने अपनी पुस्तक ’समाजशास्त्र के सिद्धान्त’ में समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में प्रतिपादित किया।
स्पेन्सर ब्रिटिश समाजशास्त्री थे।
जिस समय उन्होंने पुस्तकें लिखीं, उस समय डार्विन के विकासवाद का बड़ा प्रभाव था।
डार्विन ने बताया कि मनुष्य के शरीर का उद्विकास हुआ है।
स्पेन्सर का कहना था कि मनुष्य के शरीर के उद्विकास की तरह हम सामाजिक संस्थाओं के उद्विकास की खोज भी कर सकते हैं।
एमिल डर्कहाइम (1858-1917)
डर्कहाइम ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को उतना स्पष्ट नहीं किया जितना स्पेन्सर ने किया था।
इन्होंने अपनी पुस्तक ’रूल्ज ऑफ सोशियोलोजीकल मेथड’ में जो विचार प्रकट किये हैं, समाजशास्त्र उन विचारों के द्वारा समाज के स्वरूप को जाना जा सकता है।
उनका विचार था कि सामाजिक-वास्तविकाता के सम्पूर्ण क्षेत्र में से समाजशास्त्र अपने लिए जब तक कुछ निर्धारित क्षेत्र को नहीं चुनता तब तक उसको विज्ञान कहना कठिन है।
डर्कहाइम ने स्पष्ट किया कि समाजशास्त्र का संबंध विभिन्न संस्थाओं तथा सामाजिक प्रक्रियों से है।
डर्कहाइम का विचार है कि समाजशास्त्र की अनेक शाखाएं विभिन्न प्रकार के सामाजिक तथ्यों की प्रकृति के आधार पर बनती हैं।
समाजशास्त्र पर उन्होंने एक शोध-पत्रिका 1896 में निकाली जिसका नाम था Annee Sociologique इस शोध-पत्रिका में उन्होंने सात भाग बनाये। प्रत्येक भाग के अनेक उपभाग किये।
वे निम्न प्रकार हैं:-
मॉरिस गिन्जबर्ग ने उपरोक्त सातों क्षेत्रों का अध्ययन करने के बाद अपनी पुस्तक में डर्कहाइम के विचारों को तीन वर्गों में विभक्त किया है:-
(क) सामाजिक आकारिकी:
इसमें भौगोलिक अथवा क्षेत्रीय आधार पर वितरित लोगों के जीवन अध्ययन, उनकी सामाजिक व्यवस्था, जनसंख्या का स्वरूप तथा जनसंख्या की समस्याएं आदि के आधार पर अध्ययन किया जाता है।
(ख) सामाजिक रचना विज्ञान:
यह एक जटिल विभाजन है। यह विभिन्न संस्थाओं एवं सामाजिक तथ्यों का संकुल है जिसमें धर्म का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।
(ग) सामान्य समाजशास्त्र:
इसके द्वारा सभी सामाजिक तथ्यों के सामान्य लक्षणों का ज्ञात किया जाता है।
अर्थात् यह जाना जाता है कि क्या कोई ऐसे नियम हैं जिनके द्वारा विभिन्न सिद्धान्त बनाये जाते हैं और जिनका भिन्न-भिन्न सामाजिक विज्ञान अध्ययन करते हैं।
वास्तव में यह सामाजिक विज्ञान का आधार मूल तथ्य है।
इस प्रकार डर्कहाइम ने समाजशास्त्र के लिए ’’सामाजिक तथ्यों’’ का अध्ययन महत्वपूर्ण बतलाया।
मैक्स वेबर (1864-1920)
वेबर के अनुसार समाजशास्त्र का उद्देश्य सामाजिक व्यवहारों का अर्थ स्पष्ट करना है।
आपने एक विशेष विधि का निर्माण कार्य करने का प्रयास किया जिसे जर्मनी के बोध तथा अंग्रेजी के बोध विधि शब्दों से सम्बोधित किया।
वेबर ने समाज-विज्ञान में दो और तथ्यों को महत्वपूर्ण बताया है वस्तुनिष्ठता और मूल्य-निर्णय की निरपेक्षता।
इन दोनों के विषय में उन्होंने विशिष्ट चर्चा की है।
उन्होंने इसकी कोई औपचारिक परिभाषा प्रदान करने का प्रयत्न नहीं किया बल्कि उसे अस्पष्ट शब्द कहकर सम्बोधित किया।
उनके अनुसार ’’समाजशास्त्र वह है, जो सामाजिक क्रिया समझाने के लिए उसकी कार्य दिशा एवं परिणाम के कारणात्मक रूप को स्पष्ट करता है।’’
(Sociology is a science which attempts the interpretative understanding of social action in order thereby to arrive at a causal explanation of its course and effects.)
इस परिभाषा में सबसे महत्वपूर्ण शब्द सामाजिक क्रिया है जिसे वेबर ने एक मोटे रूप में प्रस्तुत किया है।
उनके अनुसार सभी मानव जिसमें व्यक्ति एक वैषयिक अर्थ जोड़ता है।
वेबर सामाजिक कर्ता और सामाजिक संबंधों को समाजशास्त्र की विशिष्ट विषय-वस्तु के रूप में बताने का यत्न करते हैं।
इन बातों को वेबर ने पूर्णतः स्पष्ट नहीं किया।
किन्तु उनके विचारों से इन दोनों बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण प्राप्त करने का प्रयास किया जा सकता है।
वेबर ने स्पष्टतः संस्थाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करने की और इंगित किया है।
उन्होंने निम्न विषयों पर अधिक लिखा है:-
इसके अलावा उन्होंने-
आर० बेन्डीक्स ने अपनी पुस्तक ’मैक्स वेबर: ऑन इंटेलैक्चुअल पोर्ट्रेट’ में कहा है कि वेबर सिर्फ धर्म के विद्यार्थी के लिए प्रसिद्ध है।
उनके मुख्य रूप से तीन विषय रहे हैं:
1. धार्मिक विचारों का आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव तथा उनका सामान्य सरलीकरण।
2. स्तरीकरण तथा धार्मिक विचारों का विश्लेषण तथा
3. पश्चिमी सभ्यता की विशेषताओं का ज्ञान एवं उनकी सभ्यताओं से तुलना।
पहले दो विषय तो समाज के विभिन्न अंगों के विश्लेषण एवं उनके अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं तथा तीसरा विषय विभिन्न समाजों की तुलना करते हुए किसी समाज की संरचना एवं विशेषताओं का स्पष्टीकरण करता है।
मैक्स वेबर एक जर्मन समाजशास्त्री थे।
इन्होंने समाजशास्त्र को अधिक वैज्ञानिक स्वरूप दिया।
समाजशास्त्र की परिभाषा देते हुए इन्होंने बताया कि यह विज्ञान सामाजिक कार्यों का अध्ययन करता है।
मनुष्य का व्यवहार जिसके पीछे उद्देश्य होते हैं, सामाजिक कार्य है।
वेबर ने दूसरी महत्वपूर्ण बात बताई कि समाजशास्त्र की अध्ययन विधि भी भौतिक विज्ञान की तरह है।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है।
वेबर ने समाजशास्त्र की विधियों में तुलनात्मक विधि और आदर्श प्रारूप विधि को रखा है।
एकमतता
इन चारों प्रमुख समाजशास्त्रियों के विचारों में निम्न बातों पर एकमतता है:-
समाजशास्त्र विभिन्न संस्थाओं का अध्ययन करता है जिसमें परिवार से लेकर राज्य तक संस्थाएं सम्मिलित हैं।
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के अन्तःसंबंधों का अध्ययन समाजशास्त्र करता है।
समाजशास्त्र में सम्पूर्ण समाज का अध्ययन किया जाता है।
समाजशास्त्र सामाजिक तथ्यों तथा सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है।
अतः समाजशास्त्र समाज, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक गत्यात्मकता, सामाजिक उद्विकास, सामाजिक तथ्यों, सामाजिक कार्यों इत्यादि का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।
सन्दर्भ: नागला, बी० के० (2006), ’समाजशास्त्र: एक परिचय’, हरियाणा साहित्य अकादमी’, पंचकूला, पृष्ठ सं०: 01-29।
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