समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के बीच एक गहरा सम्बन्ध है।
मनुष्यों की कृतियों में भौतिक और अभौतिक दोनों प्रकार की संस्कृति आती है।
मानवशास्त्र में मनुष्यों का उद्विकास एवं मानव द्वारा निर्मित संस्कृति, सभ्यता आदि का अध्ययन किया जाता है।
समाजशास्त्र में भी मानव-समाज और उसकी संस्कृति का अध्ययन किया जाता है।
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में मानव-समूहों के अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है, जैसा कि मानवशास्त्री हॉबेल (Adamson E. Hoebel) ने भी कहा है।
सामाजिक मानवशास्त्री मुख्य रूप से छोटे-छोटे समुदायों का अध्ययन करते हैं, जैसे-आदिवासी समुदाय में पायी जाने वाली सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।
इन अध्ययनों से जिन अवधारणाओं का विकास हुआ है, उनका उपयोग समाजशास्त्रियों ने भी आधुनिक और जटिल समाजों के अध्ययन में किया है।
पद्धति के आधार पर भी समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में कुछ हद तक समानता है।
सामाजिक या सांस्कृतिक मानवशास्त्र (Social or Cultural Anthropology) जो कि मानवशास्त्र की एक शाखा है, के कुछ विचारकों, जैसे-एल०एच० मॉर्गन, रेडफील्ड, रेडक्ल्फि-ब्राउन आदि के योगदान समाजशास्त्र के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
भारत में एम०एन० श्रीनिवास, एस०सी० दूबे, एन०के० बोस, आन्द्रे बेते प्रभूति मानवशास्त्रियों के विभिन्न अध्ययन दोनों ही विषयों में एक समान मवत्त्वपूर्ण है।
यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने Social Anthropology को Comparative Sociology भी कहा है।
मानवशास्त्र के अन्तर्गत मुख्य रूप से छोटी इकाई वाले समुदायों का अध्ययन किया गया है, जबकि समाजशास्त्र के अन्तर्गत आधुनिक और जटिल समाजों पर अधिक बल दिया गया है।
इसके बावजूद, यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा कि जटिल समाजों पर भी मानवशास्त्रीय अध्ययन हुए हैं, लेकिन तुलना करने पर यह प्रतीत होता है कि मानवशास्त्रियों के बीच आदिवासियों आदि का अध्ययन अधिक प्रचलित रहा है।
आदिवासी समाज में धर्म, जादू, कला, विवाह, परिवार, नातेदारी व्यवस्था आदि मानवशास्त्रियों के विचार के लिए मुख्य केन्द्रबिन्दु रहे हैं।
इसके विपरीत समाजशास्त्रियों ने मुख्य रूप से सामाजिक अन्तःक्रियाओं एवं उनसे उत्पन्न सामाजिक सम्बन्धों आदि पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
इसके अतिरिक्त, समूह एवं विभिन्न संस्थाओं को भी समाजशास्त्र ने अपना अध्ययन-क्षेत्र बनाया है।
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में समानताओं की चर्चा करते समय यह स्पष्ट हो जाता है कि पद्धति के स्तर पर इनमें काफी समानता है।
मानवशास्त्र में सहभागी अवलोकन का उपयोग अधिक हुआ है, जबकि समाजशास्त्र में तथ्य संकलित करने के लिए अनुसूची एवं प्रश्नावली का अधिक उपयोग होता है।
इन दो विषयों के बीच सबसे बड़ा अन्तर परिप्रेक्ष्य (Perspective) का है।
मानवशास्त्री मुख्य रूप से अपने अध्ययन के विषय को संस्कृति के सन्दर्भ में देखता है, जबकि समाजशास्त्री के अध्ययन का परिप्रेक्ष्य इससे कहीं ज्यादा व्यापक होता है।
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र समाजशास्त्री उद्विकास जैसे विषयों से दूर रहते हैं। उनकी विषय-वस्तु समकालीन महत्त्व की होती है।
सन्दर्भ-सिंह, जे०पी० (2017), ’समाजशास्त्र: अवधारणाएँ एवं सिद्धांत (तृतीय संस्करण)’, PHI Learning Private Limited, नई दिल्ली, पृ० 47-48।
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