यह लेख पुस्तकों के माध्यम से लिखा गया है। जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि करना है।
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र समाज का अध्ययन अपने-अपने तरीकों से करते हैं लेकिन फिर भी इनमें जुड़ाव है।
मार्शल के अनुसार
अर्थशास्त्र एक ओर धन का विज्ञान है।
दूसरी ओर मनुष्यों से सम्बद्ध विषयों के एक भाग का अध्ययन है।
अर्थशास्त्र को मानव-कल्याण से जोड़ने का प्रयास किया है।
अर्थशास्त्र में धन के उत्पादन की अनेक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जिनके पीछे सामाजिक सम्बन्ध होते हैं।
सामाजिक सम्बन्धों की जड़ों में आर्थिक सम्बन्ध होते हैं।
परिवार, जाति, वर्ग आदि में आर्थिक हितों के आधार पर सहयोग एवं संघर्ष पाया जाता है।
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र के बीच कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है यह मार्क्स के Das Capital एवं वेबर के The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism से बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है।
मार्क्स ने यदि यह प्रमाणित किया कि आर्थिक संरचना सामाजिक संरचना का आधार है, तो वेबर ने यह प्रमाणित किया कि धर्म आर्थिक संगठनों को प्रभावित करता है।
वेबर के अनुसार आधुनिक पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टैंट धर्म की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रही है।
पार्सन्स एवं स्मेल्सर ने तो आर्थिक सिद्धांत को समाजशास्त्रीय सिद्धान्त का ही अंग माना है।
मिरडॅल का Asian Darama और हॉजलिट्स की Sociological Aspects of Economic Growth ऐसी कृतियाँ हैं, जो समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र के बीच संबंधो को स्पष्ट करती हैं।
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में नगरीकरण, आर्थिक प्रगति, श्रम-विभाजन, बेरोजगारी, उद्योगिकरण, सामाजिक कल्याण, जनसंख्या आदि का अध्ययन होता है।
समाजशास्त्र में सामाजिक जीवन के पक्षों का अध्ययन होता है।
अर्थशास्त्र में केवल आर्थिक पहलू का अध्ययन होता है।
अर्थशास्त्र में घटना की व्याख्या के लिए आर्थिक कारणों की खोज की जाती है।
समाजशास्त्र में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारणों के योगदानों की भी चर्चा की जाती है।
समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र एक विशिष्ट समाजविज्ञान।
सन्दर्भ- सिंह, जे०पी० (2017), ’समाजशास्त्र: अवधारणाएँ एवं सिद्धांत’, तृतीय संस्करण, पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली, पृ० 47।
यह लेख दैनिक अमर उजाला में छपा था। इन्सानी दिमाग और माइक्रोप्लास्टिक के कण लेख…
उक्त लेख (चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करने वालों में बढ़ रही हैं मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ)…
वर्ण व्यवस्था का उद्भव भारतीय समाज एवं संस्कृति के विकास के आरम्भिक दौर में हुआ।…
वस्तुपरकता (Objectivity) परिघटनाओं के अध्ययन का एक मानसिक दृष्टिकोण है। वस्तुपरकता यह लेख वस्तुपरकता से…
समाजशास्त्रीय शोध एक अत्यंत व्यापक अवधारणा है। समाजशास्त्रीय शोध सामाजिक शोध का प्रयोग समाजशास्त्र की…
जब सामाजिक क्षेत्र के प्रश्नों के उत्तर खोजने का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित प्रयास किया जाता…