किसी भी देश का शत्रु सीमा पर ही नहीं होता है बल्कि गैर-परंपरागत युद्धों के माध्यम से हमारे बीच ही होता है। उसका कोई भी रूप हो सकता है।
सूचना और साइबर युद्ध आज सबसे बड़ा खतरा है। जिनके माध्यम से किसी भी राष्ट्र के जनसमूह में अस्थिरता पैदा की जा सकती है।
आंतरिक अस्थिरता में दुष्प्रचार की सबसे बड़ी भूमिका होती है। जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।
भारत के जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पुर्वोत्तर इसके अच्छे उदाहरण हो सकते हैं। जहाँ पर इस तरह की गतिविधियाँ दिखाई देती हैं।
आंतरिक सुरक्षा में साइबर युद्ध ने एक समस्या और पैदा करदी है क्योंकि शत्रु हमें दिखाई नहीं देता है और वह नित नए जाल बुनता रहता है।
हो सकता है कि वह हमारा करीबी ही हो। ऐसे में शक का दायरा बढ़ जाना लाजमी है।
यदि आतंकवाद अपना दायरा बढ़ाता है या और कोई वाद जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करता हो।
तो सवाल यह खड़ा होता है कि इन आतंकियों को धन, प्रशिक्षण और हथियार कौन उपलब्ध कराता है।
भारत के जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को सहायता किसके निर्देश से मिलती है या किसके द्वारा दी जाती है।
यह सवाल जितना सुलझा हुआ प्रतीत होता है शायद उससे कहीं ज्यादा उलझा हुआ है।
हम किसी को National Security के मामले में चिंहित्त नहीं करते हैं बल्कि सबुतों के साथ उसको कटघरे में खड़ा करते हैं और उसके बाद ही कोई निर्णय लेने के लिए ततपर होते हैं।
भारत हर वर्ष 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाने का उद्देश्य दुर्घटनाओं को रोकने के लिए किए जाने वाले सुरक्षा उपायों के बारे में जानना है और साथ ही इनके बारे में जागरूकता पैदा करना है।
यह दिवस पूरे सप्ताह मनाया जाता है।
भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् की स्थापना 4 मार्च, 1972 को हुई थी।
इसका महत्व यह है कि सभी सेक्टरों में सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाई जाये।
भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस 2023 की थीम ’’हमारा लक्ष्य शून्य नुकसान’’ है।
वर्तमान में मीडिया National Security के मामले में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
किसी भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमें हर मोर्चे पर पुनः सुधार और बदलाव करने होंगे क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा समयानुसार बदलती रहती है।
साइबर युद्धों ने राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को पुनः परिभाषित करने के लिए विवश किया है।
भारत के साथ-साथ हमारे पड़ौसी भी हमारे साथ अपने व्यावहार को बदल रहे हैं। जैसे चीन अपनी आर्थिक नीति को बदल कर हमें प्रभावित करना चाहता है और उसकी विस्तार नीति तो जगजाहिर है।
यहाँ मैं राष्ट्रीय शक्ति के सिद्धांत व तत्वों की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं मानता हूँ कोई भी राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करता है।
लेकिन जब से साइबर हमले हो रहे हैं उसमें हमें दुश्मन दिखाई नहीं देता है वह छुप कर केवल कुछ आंकड़ों के आधार पर हमारी सभी तैयारियों को पलभर में बिगाड़ सकता है।
अभी तो यह प्रारम्भ है आने वाला समय और भी खतरनाक होगा। वह इस रूप में क्योंकि तकनीक अपनी चरमसीमा पर होगी। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमें तकनीकी के साथ भी ताल-मेल बिठाकर चलना होगा।
अंततः राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा वाद-विवाद को जन्म देती रही है।
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