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Best way of Mills महाशक्ति सिद्धांत

समाजशास्त्र में कई प्रकार के सिद्धांतों का प्रचलन है।

प्रस्तुत लेख में मिल्स के महाशक्ति सिद्धांत को परिभाषित किया गया है।

मिल्स के समय में दो विचारधाराएँ प्रचलित थीं उदारवाद और मार्क्सवाद;

उदारवाद अब प्रासंगिक नहीं रहा और मार्क्सवाद पर्याप्त नहीं है।
महाशक्ति सिद्धांत

इसलिए एक नइ विचारधारा की आवश्यकता थी। जिसको मिल्स ने महाशक्ति सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया था।

कुछ पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इस लेख को लिखा गया है। जो आपका ज्ञान बढ़ाने में मददगार साबित होगा।

इस शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग अमरीकी समाजशास्त्री सी० राइट मिल्स (C.Wright Mills, 1916-1962)-The Sociological Imagination (1959) ने एक निन्दनीय अर्थ में टैलकॉट पार्सन्स (Talcott Parsons, 1902-1979) जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के लिए किया था। जिसको मिल्स ने महाशक्ति सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया था।

American sociologist C. Wright Mills (1916 – 1962), 1960. (Photo by Archive Photos/Getty Images)

मिल्स समाजशास्त्र में व्यापक स्तर पर अमूर्त सामान्यीकरण (Abstract generalization) की प्रवृत्ति के विरोधी थे;

क्योंकि उनका विचार यह था कि इस प्रकार के सिद्धांतों से समाज का गहराईपूर्ण ढंग से विश्लेषण नहीं किया जा सकता है।

Talcott Parsons (1902-1979)

मिल्स ने आधुनिक समाजों को ऐतिहासिक युगों की विशिष्टता के आधार पर और मानवीय स्वतंत्रता के पैमाने के आधार पर समझने का प्रयास किया। जिसका आधार महाशक्ति का सिद्धांत है।

उनके अनुसार आधुनिक युग में नैतिकता का पतन हो गया है।

पूरे विश्व पर पश्चिम का वर्चस्व है।

आधुनिक पश्चिम सबसे अधिक अनैतिक है।

मिल्स ने अमेरिका में परिवर्तनवादी समाजशास्त्र को आरंभ करने में सार्थक भूमिका निभाई।

अमेरिकी शक्ति संरचना का विश्लेषण और सत्ता विमर्श, समाजशास्त्र को मिल्स की सबसे बड़ी देन है।

मिल्स ने यह कहा कि आर्थिक निर्धारणवाद की सरल दृष्टि को राजनैतिक एवं सैनिक निर्धारणवाद में बदल देना चाहिए।

उन्होंने पूँजी, राजनैतिक शक्ति, और सैनिक शक्ति को अधिक महत्वपूर्ण माना था।

अमेरिकी समाजशास्त्र की मुख्य धारा का मिल्स ने पद्धति संबंधी विचारो के कारण सबसे अधिक विरोध किया।

मिल्स ने सिद्धांत के आधार पर भी अमेरिकी समाजशास्त्र की मुख्यधारा की मान्यताओं का विरोध किया।

मिल्स ने प्रकार्यवाद को अवास्तविक और अव्यवहारिक कहा था।

मिल्स ने टालकॉट पारसन्स की आलोचना महाशक्ति सिद्धांत के आधार पर की थी।

महाशक्ति सिद्धांत

Read this: स्तरीकरण के आधुनिक सिद्धांत एवं नए स्वरूप

मिल्स ने 1959 में सोशिओलोजिकल इमेजिनेशन नामक पुस्तक लिखी थी।

यह बहुत छोटी सी है परंतु गोर्डन मार्शल के अनुसार यह मिल्स की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है।

इस पुस्तक में मिल्स ने पहली बात यह कही कि समाजशास्त्र एक सार्थक कल्पना है, एक विज्ञान नहीं है।

यह बात इस पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है। यह पुस्तक एक प्रकार की सामाजिक आलोचना है।

मिल्स ने कहा कि शासक समूहों या अभिजन में जनता के लिए सरोकार या संबद्धता होनी चाहिए।

मिल्स के अनुसार समाजशास्त्र एक समाजशास्त्रीय दृष्टि है। विश्व को देखने का एक तरीका है।

समाजशास्त्र समस्याओं और घटनाओं का निष्पक्ष होकर केवल विवेचन नहीं करता है बल्कि इसकी कोशिश होनी चाहिए कि मानवतावादी मुद्दों और सामाजिक प्रश्नों को हल किया जा सके।

इसलिए मिल्स ने कहा कि समाजशास्त्र एक ऐसी सार्थक कल्पना है जिसमें हम एक बेहतर समाज, एक मानवतावादी समाज की कल्पना करते हैं।

इस पुस्तक में मिल्स ने अमेरिकी समाजशास्त्र की मुख्यधारा की गंभीर आलोचना की।

उन्होंने अमूर्त अनुभववाद को एक ऐसा फरेब बताया जिससे किसी वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है।

प्रकार्यवाद को मिल्स ने एक अवास्तविक सिद्धांत कहा।

यह सिद्धांत से अधिक एक विचारधारा है जो शासक अभिजन के हितों की रक्षा के लिए वैचारिक सामग्री प्रदान करता है।

इस मामले में प्रकार्यवाद के मुख्य नायक और अमेरिकी समाजशास्त्र की मुख्यधारा के समाजशास्त्री टालकट पारसन्स की उन्होंने बड़ी तीखी आलोचना की।

मिल्स ने कहा महाशक्ति सिद्धांत महत्वपूर्ण एवं सार्थक घटनाओं के संबंध में कारणात्मक एवं प्रभावात्मक विचारों के रूप में दिए जाते हैं।

मिल्स ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को उजागर करते हुए कहा है कि इसमें समाज की संरचना एवं व्यक्ति के जीवन का अध्ययन किया जाता है।

समाजशास्त्रीय कल्पना अथवा समाजशास्त्र का स्वरूप मिल्स के अनुसार व्यक्तियों को यह सामार्थ्य अथवा अवसर देता है कि वे निजी दुःखों को सार्वजनिक मुद्दों के संदर्भ में समझ सकें।

उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति एकदम खास कारणों से बेरोजगार हो सकता है, परंतु जब समाज में बेरोजगारी बढ़ जाती है तब यह एक सार्वजनिक मुद्दा बन जाता है एवं इसकी व्याख्या की आवश्यकता होती है।

मिल्स ने इस बात पर बार-बार बल दिया है कि एक समाजशास्त्री को आवश्यक रूप से समाज की आर्थिक एवं राजनैतिक संस्थाओं का अध्ययन करना है।

उसे केवल व्यक्तियों की परिस्थितियों एवं चरित्र का अध्ययन नहीं करना है। समाजशास्त्र समाजों के इतिहास के संदर्भ में व्यक्तियों की जीवनियों का अध्ययन है।

वास्तव में मिल्स का समाजशास्त्र एक प्रकार की सामाजिक आलोचना है।

मिल्स ने पारेटो की इस बात को खारिज कर दिया कि अभिजन में विशेष मनोवैज्ञानिक अथवा श्रेष्ठ गुण होते हैं जिसके कारण वह आम जनता पर शासन करता है। जिसका आधार महाशक्ति का सिद्धांत है।

मिल्स ने कहा कि सही बात यह है कि संस्थाओं की बनावट ही ऐसी है कि जो लोग शीर्ष पर होते हैं अर्थात् संस्थात्मक श्रेणीक्रम के उच्च शिखर पर होते हैं या समादेशी पदों पर होते हैं वे ही शक्ति पर एकाधिकार कर लेते हैं।

समाज में कुछ संस्थाएँ सबसे महत्वपूर्ण स्थानों को नियंत्रित करती हैं ऐसे लोग जो उन समादेशी पदों अथवा कमांड पोस्ट पर होते हैं। वे ही शक्ति अभिजन (power elite) होते हैं।

महाशक्ति सिद्धांत की समाजशास्त्र में बहुत ही उपयोगिता है। जिसका आधार महाशक्ति का सिद्धांत है।

सन्दर्भ-

सिंह, जे०पी० (2009), ’समाजविज्ञान विश्वकोश’, पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृ० 268।

Dr. Dinesh Chaudhary

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