यह लेख पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से लिखा गया है। लेख में जलवायु परिवर्तन से संबंधित तथ्यों के बारे में बात की गई है। लेख लिखने का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता प्रदान करना है। लेख में प्रयुक्त मुख्य शब्दावली पुस्तकों से ली गई है।
जलवायु परिवर्तन आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है।
मनुष्य अपने कार्यकलापों के माध्यम से दुनिया का तापमान बढ़ा रहा है।
यदि तापमान अपनी सीमा से अधिक बढ़ता है तो सम्भव है जलवायु में परिवर्तन होगा।
यदि तापमान अधिक बढ़ता है तो मनुष्य जीवन पर संकट आ सकता है।
जैसे कि भयावह सूखा पड़ सकता है, समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है और इन सभी प्राकृति आपदाओं के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त भी हो सकती हैं।
इन सब तथ्यों से उजागर होता है कि मनुष्य जाति के आगे जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है।
संयुक्त राष्ट्र ने देशों को दो श्रेणियों में विभाजित किया है।
पहली श्रेणी में विकसित देश आते हैं और दूसरी श्रेणी में विकासशील देश आते हैं।
इन देशों का वर्गीकरण जीडीपी, जीएनपी, प्रतिव्यक्ति आय, जीवन स्तर और औद्योगिकरण जैसे आर्थिक मुद्दों पर आधारित होता है।
विकसित देशों को औद्योगिक देश भी कहा जा सकता है। इन देशों की अर्थव्यवस्था परिपक्व और परिष्कृत होती है।
जिसे सकल घरेलू उत्पाद के द्वारा मापा जाता है। इन देशों के पास एडवांस टेक्निकल इंफ्रास्ट्रक्चर होता है।
विकसित देशों के नागरिक आमतौर पर क्वालिटी हेल्थ केयर और हायर स्टडी का फायदा उठाते हैं।
दूसरी ओर विकासशील देश वह हैं जो विकसित हो रहे हैं या उन देशों को उभरता हुआ बाजार कहा जा सकता है।
इन देशों की जीडीपी विकसित देशों की तुलना में कम होती है।
यहाँ पर प्रति निवासी औसत आय कम है और यहाँ पर क्वालिटी हेल्थ केयर और हायर स्टडी की पहुँच काफी सीमित है।
इन गैसों के कारण ग्रीनहाउस प्रभाव होता है। वायुमंडल में प्राथमिक ग्रीनहाउस गैसें पाँच हैं-(1) जल वाष्प, (2) कार्बन हाइऑक्साइड, (3) मीथेन, (4) नाइट्रस ऑक्साइड एवं (5) ओजोन।
ग्लोबल वार्मिंग–
इसका तात्पर्य-तापमान में होने वाली वृद्धि से है और इस तापमान के कारण मौसम चक्र में भी परिवर्तन होता है।
इसके परिणाम बड़े ही भयावह स्थिति उत्पन्न करते हैं। यह आने वाले समय के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
यह एक ऐसा खतरा है जो सम्पूर्ण विश्व को दिख तो रहा है लेकिन इससे बचने के लिए अभी तक तैयारियाँ बहुत ही कम हैं।
यदि विश्व के राष्ट्र इस समस्या को थोड़ा गम्भीरता से लेते तो यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।
अमेरिका ने अब तक किसी भी दूसरे देश की तुलना में अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन किया है।
1950 तक आधे से अधिक वैश्विक कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन यूरोप से हो रहा था।
पिछले केवल 50 वर्षों में ही दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में विकास ने इन क्षेत्रों के कुल योगदान में बढ़ोतरी की है।
भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, बावजूद इसके कि यहाँ प्रति व्यक्ति उत्सर्जन तुलनात्मक रूप से कम है (अमर उजाला, 17 अप्रैल, 2023, देहरादून संस्करण, वर्ष-27, अंक-51, यू०के०, पेज-12)।
संयुक्त राष्ट्र का 27वाँ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-
यह सम्मेलन मिस्र के शर्म अल-शेख में संपन्न हुआ।
विकासशील देशों के लिए ’लॉस एण्ड डैमेज फंड’ बनाने पर सहमति हुई।
पूर्वी अफ्रीका का एक हिस्सा पिछले तीन साल से भीषण सूखे का सामना कर रहा है।
तुफान, लू और सूखे का दायरा बढ़ा है।
ग्रीन हाउसगैसों का मुद्दा
ग्रीनहाउस गैस का मुद्दा अनसुलझा रहा। देखा जाए तो यह जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है।
80 से अधिक देशों (भारत को मिलाकर) का कहना है कि कच्चे तेल और गैस जैसे सभी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए।
सिर्फ कोयले पर ही फोकस न किया जाये। यह बात करने के मुख्य विषय हों। कनाडा, सऊदी अरब और चीन जैसे देशों द्वारा इस तरह के प्रस्ताव का विरोध किया गया।
24 देशों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने पर सहमति हुई।
फंड की व्यवस्था
फंड के स्वरूप को लेकर स्पष्ट किया गया कि कौन से देश एवं वित्तीय संस्थान कोष में योगदान करेंगे और यह धन जाएगा कहाँ।
इस कोष का लाभ किसे मिलेगा यह स्पष्ट नहीं हुआ है। कोष में योगदान देने वाले देशों की बात करें तो उसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन एवं सऊदी अरब होंगे ऐसा विचार बना है लेकिन इस मत पर विवाद भी हो सकता है।
एक दशक पूर्व धनी उत्सर्जक देशों (अमेरिका, यूरोपीय संघ सहित अन्य धनी देश) ने गरीब देशों की मदद करने का वादा किया था लेकिन वह पूरा न हो सका।
उस वादे में और अब की सहमति में बहुत बड़ा अन्तर है। विकासशील देशों की मदद के लिए बनी सहमति एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई मुद्दों पर बात ग्लासगो से आगे नहीं बढ़ सकी।
मेरा मानना है कि जलवायु परिवर्तन केवल किसी एक देश का मुद्द नहीं होना चाहिए बल्कि यह सम्पूर्ण मानवजाति का मुद्दा है। यदि समय रहते समाधान नहीं तलाशे गए तो बहुत देर हो जाएगी।
जब मानव ही सुरक्षित नहीं रहेगा तो विकास किसके लिए। वैसे भी मौसमी अनियमित्तताएँ बढ़ती जा रही हैं जो हमारे लिए एक संकेत है और हम सबको इस संकेत को समझना चाहिए नहीं तो संकेत का दौर भी समाप्त हो जाएगा और फिर कोई भी रास्ता हामरे पास नहीं होगा।
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