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The Best Thinking about Sociology कौंत के विचार

कौंत के विचार समाजशास्त्र के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। कौंत समाजशास्त्र के पिता हैं।

यह लेख कौंत के विचारों से संबंधित है। इन्हें Father of Positive Philosophy भी कहा जाता है। लेख का उद्देश्य कौंत के विचारों को परिभाषित करना है।

कौंत के विचार

समाजशास्त्र के जनक ऑगस्त कौंत ने परिवार को समाज की एक आधारभूत इकाई कहा है।

मानव समाज अत्यंत जटिल परिघटना है और इसका व्यवस्थित अध्ययन बगैर विशेषज्ञता के करना असंभव है ।

Sociology शब्द की उत्पत्ति लातीनी (Latin) शब्द ’socius’ (अर्थात् ’सहचर’) तथा ग्रीक (Greek) शब्द ’ology’ (अर्थात् ’का अध्ययन’) से हुई है ।

Sociology

’समाजशास्त्र’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले ऑगस्त कौंत (Isidore Marie Auguste Francois Xavier Comte, 1798-1857) ने 1838 में किया था।

इस शब्द का ’Sociologie’ प्रथम हिज्जे या वर्तनी है।

चूँकि ’Sociology’ शब्द और उस विषय के जन्मदाता ऑगस्त कौंत हैं, इसलिए उन्हें समाजशास्त्र का जनक (Father of Sociology) कहा जाता है।

Auguste Comte

उन्होंने इस विषय की कल्पना फ्रांस की औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए की थी ।

कौंत ने समाजशास्त्र को दो भागों में बाटा था-सामाजिक स्थिरता और सामाजिक गतिशीलता (Social Statics and Social Dynamics)।

सामाजिक स्थिरता के अन्तर्गत कौंत ने संस्थात्मक जटिलताओं को रखा और सामाजिक गतिशीलता के अन्तर्गत विकास तथा परिवर्तनशलता को।

कौंत ने ही सर्वप्रथम समाज के अध्ययन के लिए एक अलग विज्ञान की कल्पना की।

उनके अनुसार, समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का न सिर्फ वैज्ञानिक अध्ययन करेगा, बल्कि उन समस्त नियमों तथा शक्तियों का भी अध्ययन करेगा, जिनके फलस्वरूप समाज में परिवर्तन होता है या व्यवस्था बनी रहती है।

इस नये विज्ञान का नाम उन्होंने सर्वप्रथम ’Social Physics’ रखा था और बाद में इसका नाम ’Sociology’ रखा। इस नवीन विज्ञान को उन्होंने ’’व्यवस्था तथा प्रगति का विज्ञान’’ (Science of social order and social progress) के रूप में परिभाषित किया।

ऑगस्त कौंत का विचार था कि मानव का बौद्धिक विकास तीन चरणों से गुजरता है। जैसे-जैसे मानव समाज एक चरण से दूसरे चरण में प्रवेश करता है, वैसे-वैसे समाज में जटिलता एवं गहनता बढ़ती जाती है।

तीन चरण (Law of three stage)

वे तीन चरण (Law of three stage) निम्न हैं- धर्मशास्त्रीय (Theological), तात्विक (Metaphysical) एवं प्रत्यक्षवादी (Positivistic)।

(1) धर्मशास्त्रीय या काल्पनिक स्तर (Theological or Fictitious Stage)-

मानव के चिन्तन का यह वह स्तर है जिसमें वह प्रत्येक घटना के पीछे अलौकि शक्ति का हाथ मानता था।

कौंत ने इस धार्मिक स्तर के भी तीन उप-स्तरों की चर्चा की है, वे हैंः

(क) वस्तु-पूजा (Fetihism)-

इस स्तर में इन्सान ने प्रत्येक वस्तु में जीवन की कल्पना की, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव।

(ख) बहुदेववाद (Polythesim)-

इस स्तर में विभिन्न देवी-देवताओं की कल्पना की गयी और उनका संबंध विभिन्न प्रकार की सम्बद्ध घटनाओं से माना गया।

(ग) एकेश्वरवाद (Monotheism)-

यह धर्मशास्त्रीय स्तर का अन्तिम चरण है। इस चरण में लोग बहुत देवी-देवताओं में विश्वास न कर एक ही ईश्वर में विश्वास करने लगे।

अतः यहाँ पर कौंत के विचार का महत्व बढ़ जाता है।

(2) तात्त्विक या अमूर्त स्तर (Metaphysical or Abstract)-

इसे कौंत ने धर्मशास्त्रीय एवं वैज्ञानिक स्तर के बीच की स्थिति माना है। इस अवस्था में मनुष्य की तर्क-क्षमता (Reasoning Capacity) बढ़ गयी।

इस स्तर में प्रत्येक घटना के पीछे अमूर्त एवं निराकार शक्ति का हाथ माना गया।

इस स्तर में सत्ता का आधार दैवी अधिकार के सिद्धान्त होते थे।

सामाजिक संगठन के वैधानिक पहलू विकसित होने लगे।

राजा की निरंकुश सत्ता की जगह धनिकतंत्र या कुबेरतंत्र (Plutocracy) की व्यवस्था चलने लगी।

(3) प्रत्यक्षवादी स्तर (Positivistic Stage)-

यह समाज एवं मानव मस्तिष्क के उद्विकास का अंतिम चरण है। इस स्तर में हर घटना का विश्लेषण, अवलोकन, निरीक्षण एवं प्रयोग वैज्ञानिक तुलना के आधार पर होने लगता है।

समाज में बौद्धिक, भौतिक तथा नैतिक शक्तियों का अच्छा समन्वय देखने को मिलता है। इस स्तर में ही मानवता का धर्म (Religion of Humanity) एवं प्रजातंत्र का विकास होता है। वर्तमान मानव समाज इसी स्तर में है।

संक्षेप में, ऑगस्त कौंत ने उपर्युक्त तीन स्तरों के सिद्धान्त (Law of Three Stages) को सामाजिक जीवन पर लागू कर समाज के उद्विकास की प्रक्रिया को सहज ढंग से समझाने का प्रयत्न किया है।

वस्तुतः तीन स्तरों का नियम सामाजिक परिवर्तन की आरंभिक व्याख्या है, जिसमें जिसमें कौंत के विचार (Idea) को एक मुख्य कारक माना गया है।

यह कौंत के विचार का अंतिम चरण है।

कौंत का विज्ञानों का सोपानक्रम (Hierarchy of Science)-

गणित (Mathematics) खगोलशास्त्र (Astronomy), भौतिकशास्त्र (Physics), रशायनशास्त्र (Chemistry), प्राणिशास्त्र (Biology) एवं समाजशास्त्र (Sociology) का सिद्धान्त भी एक उद्विकासीय सिद्धान्त है।

उनका मानना है कि वैज्ञानिक चिन्तन का उद्विकास हुआ है।

उसके अनुसार समाजशास्त्र की उत्पत्ति सबसे बाद में हुई है, इसीलिए यह सबसे अधिक जटिल विषय है।

चूँकि गणित सबसे बुनियादी और सरल विषय है, इसलिए इसकी उत्पत्ति सबसे पहले हुई है।

कौंत का कहना है कि हर पूर्ववर्ती विज्ञान बाद में आनेवाले विषय से ज्यादा सरल है।

दूसरे शब्दों में, उनका यह विचार घटती हुई सामान्यता और बढ़ती हुई जटिलता (Decreasing generality and increasing complexity) पर आधारित है।

जो विषय-वस्तु दूसरी विषय-वस्तु पर जितनी ही निर्भर करेगी वह उतनी ही जटिल होगी । अतः यहाँ पर कौंत के विचार की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

अंततः यहाँ पर यह कहना गलत नहीं होगा कि समाजशास्त्र के आरम्भिक दौर में कौंत के विचार बहुत ही महत्वपूर्ण थे।

Auguste Comte Father of Positive Philosophy

May You Like: Best Founding Father ऑगस्त कौंत इस लेख में कौंत के विचार परिभाषित हैं।

Auguste Comte Contribution to Sociology

Reference:

1-सिंह, जे०पी० (2008), ’समाजशास्त्र: अवधारणाएँ एवं सिद्धान्त’, पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०-209।

2-बॉटमोर, टी०बी० (2004), ’समाजशास्त्र (समस्याओं और साहित्य का अध्ययन)’, (अनुवादक-गोपाल प्रधान), ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली, पृष्ठ सं०-22।

3-सिंह, जे०पी० (2011), ’समाजशास्त्र के मूलतत्व’ (तृतीय संस्करण), पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०-01।

4-सिंह, जे०पी० (2011), ’समाजशास्त्र के मूलतत्व’ (तृतीय संस्करण), पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०-01।

5-सिंह, जे०पी० (2011), ’समाजशास्त्र के मूलतत्व’ (तृतीय संस्करण), पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०-04।

6-सिंह, जे०पी० (2011), ’समाजशास्त्र के मूलतत्व’ (तृतीय संस्करण), पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०-16।

7-सिंह, जे०पी० (2012), ’आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’, पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ सं०: 33-34।

Dr. Dinesh Chaudhary

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